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ग़ज़ल
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर राएगाँ क्यूँ हो
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
जब पहले-पहल एहसास हुआ है ग़म का तो दिल ऐसा काँपा
जैसे कि दुल्हन पहली शब की आहट जो मिले थर्रा जाए