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ग़ज़ल
नज़ाकत का ये 'आलम फूल भी तोड़े तो बल खा कर
न जाने दिल मिरा किस तरह तोड़ा पहलवाँ हो कर
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है