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ग़ज़ल
नीम के पत्तों का ज़ख़्मों को धुआँ दे दीजिए
फिर मिरी आँखों को पहरे-दारियाँ दे दीजिए
पी पी श्रीवास्तव रिंद
ग़ज़ल
हम को तुम को सब से पहले दरमियाँ रक्खा गया
फिर कहीं जा कर ज़मीं पर आसमाँ रक्खा गया
शिवेंद्र सिंह
ग़ज़ल
सुनते हैं कि था पहले दरिया में निहाँ क़तरा
अब बहर ने चाही है क़तरे से हम-आग़ोशी
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
अगर मुझ से जुदा होने की तू ने ठान ही ली है
जुदाई डाल पहले दरमियाँ मेरे सर ओ तन के
रंजूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अब इस से पहले समुंदर से जा के मिल पाता
ख़ुद अपनी प्यास में ही ग़र्क़ हो गया दरिया