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ग़ज़ल
हरम के दिल में सोज़-ए-आरज़ू पैदा नहीं होता
कि पैदाई तिरी अब तक हिजाब-आमेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यक़ीं पैदा कर ऐ नादाँ यक़ीं से हाथ आती है
वो दरवेशी कि जिस के सामने झुकती है फ़ग़्फ़ूरी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हमारी हर नज़र तुझ से नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़-ए-रक़ाबत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है