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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
अहद-ए-वफ़ा को तोड़ के हम भी हैं मुज़्महिल
तुम भी उधर हो चाक गरेबाँ किए हुए
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
सद-चाक किया पैरहन-ए-गुल को सबा ने
जब वो न तिरी ख़ूबी-ए-पोशाक को पहुँचा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
देखो तो ज़र्फ़-ए-दिल-ए-चाक भी ऐ दाद-रसाँ
चश्म-ए-पुर-आब को भी दश्त-ए-तपाँ तक लाए