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ग़ज़ल
कफ़्श-दोज़ उन के जब अपने ही बराबर बैठें
ऐसी मज्लिस में तो पैज़ार उठे और बैठे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
हमारी हर नज़र तुझ से नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़-ए-रक़ाबत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है