आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "pale-ba.dhe"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "pale-ba.dhe"
ग़ज़ल
ग़रीब आँख के घर में पले-बढ़े हैं ख़्वाब
तभी तो नींद की क़ीमत समझ रहे हैं ख़्वाब
सुभाष पाठक ज़िया
ग़ज़ल
वक़्त की आज़माइशें लाती हैं ज़ीस्त पर निखार
फूलों को देख लीजिए काँटों में जो पले-बढ़े
एजाज़ वारसी
ग़ज़ल
ये जो आँसुओं का लिफ़ाफ़ा है कई दर्द इस में पले बढ़े
कभी झाँक ले मिरी आँख में तुझे ए'तिबार अगर न हो
अच्युतम यादव
ग़ज़ल
इक मुट्ठी तारीकी में था इक मुट्ठी से बढ़ कर प्यार
लम्स के जुगनू पल्लू बाँधे ज़ीना ज़ीना उतरी मैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
बढ़ते बढ़ते बढ़ गई वहशत वगर्ना पहले तो
हाथ के नाख़ुन बढ़े सर के हमारे मू बढ़े