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ग़ज़ल
हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद