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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
लिपटना पर्नियाँ में शोला-ए-आतिश का पिन्हाँ है
वले मुश्किल है हिकमत दिल में सोज़-ए-ग़म छुपाने की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मौसमों के तग़य्युर को भाँपा नहीं छतरियाँ खोल दीं
ज़ख़्म भरने से पहले किसी ने मिरी पट्टियाँ खोल दीं
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
दिल तो लगते ही लगे गा हूरयान-ए-अदन से
बाग़-ए-हस्ती से चला हूँ हाए परियाँ छोड़ कर