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ग़ज़ल
ये ख़त में मुन्नी के पापा ने आज लिक्खा है
जो तुम नहीं तो अजब ज़िंदगी लगे है मुझे
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है