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ग़ज़ल
बहार-ए-हुस्न ये दो दिन की चाँदनी है हुज़ूर
जो बात अब की बरस है वो पार-साल नहीं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
सर पर सात आकाश ज़मीं पर सात समुंदर बिखरे हैं
आँखें छोटी पड़ जाती हैं इतने मंज़र बिखरे हैं
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
मेरी बातें सुन के पर सब पंछियों के झड़ गए
ग़म की अर्ज़ानी से पत्ते टहनियों के सड़ गए