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ग़ज़ल
समझाने वालों ने कितना उन को समझाया लोगो
फिर भी धोका दिल वालों ने हिर-फिर कर खाया लोगो
इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
यक़ीनी है घड़ी दो में मरीज़-ए-ग़म का मर जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
उफ़ वो इक हर्फ़-ए-तमन्ना जो हमारे दिल में था
एक तूफ़ाँ था कि बरसों हसरत-ए-साहिल में था
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
सुकूँ पाया तबीअ'त ने न दिल को ही क़रार आया
जो आँसू आँख में आया बड़ा बे-ए'तिबार आया