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ग़ज़ल
ये आतिश-ए-ग़म है कि दम-ए-सर्द से अपने
सर-चश्मा-ए-ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ में लगी आग
मातम फ़ज़ल मोहम्मद
ग़ज़ल
क्या दिलकशी है अंजुम-ओ-ख़ुर्शीद-ओ-माह में
ऐसे न जाने कितने हैं इस जल्वा-गाह में
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
क्या ग़म जो अंधेरा है दुनिया की फ़ज़ाओं में
जो दाग़-ए-तमन्ना है ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ है
अज़मत भोपाली
ग़ज़ल
ज़र्रा-ए-वादी-ए-उल्फ़त पे मुनासिब है निगाह
फ़लक-ए-हुस्न पे ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ हो कर