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ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
अनंत गुप्ता
ग़ज़ल
रखते हैं क्या वो बस्तों में बस्ते पढ़ा करो
लिखते हैं क्या वो पर्चों में पर्चे पढ़ा करो
समीना रहमत मनाल
ग़ज़ल
जलना तुम्हें इस दिल का मैं आज दिखाऊँगा
तुम ने नहीं देखा है इक पर्चे का जल जाना
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
सामने बैठी सुंदर नारें आप तलब बन जाती थीं
पर्दों में से फ़रमाइश के सौ सौ पर्चे आते थे