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ग़ज़ल
देश से जब प्रदेश सिधारे हम पर ये भी वक़्त पड़ा
नज़्में छोड़ी ग़ज़लें छोड़ी गीतों का बेवपार किया
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़ सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़ पर्दे में मुँह छुपाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं