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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लाल डोरे तिरी आँखों में जो देखे तो खुला
मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ हैं पैमाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
दिल ले के दग़ा देते हैं इक रोग लगा देते हैं
हँस-हँस के जला देते हैं ये हुस्न के परवाने को
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
फिर वो परवाने जिन्हें इज़्न-ए-शहादत न मिला
फिर वो शमएँ कि जिन्हें रात न होने पाई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दुआएँ दो मोहब्बत हम ने मिट कर तुम को सिखलाई
न जलती शम्अ' महफ़िल में तो परवाने कहाँ जाते
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
शम्अ ने जल कर जलाया बज़्म में परवाने को
बिन जले अपने जलाना क्या किसी का सहल है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नक़ाब उल्टा है शम्ओं' ने सितारो तुम तो सो जाओ
करेंगे रक़्स परवाने सितारो तुम तो सो जाओ