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ग़ज़ल
फ़क़ीर-ए-राह को बख़्शे गए असरार-ए-सुल्तानी
बहा मेरी नवा की दौलत-ए-परवेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
ख़ामोशी बोहरान-ए-सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
सन्नाटा तक चीख़ रहा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
वक़्त के तूफ़ानी सागर में क्रोध कपट के रेले हैं
लेकिन आस के माँझी हर लहज़ा मौजों से खेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
शीरीं की अदाओं पर माइल परवेज़ की सतवत से ख़ाइफ़
जो बन न सके फ़रहाद कभी उन तेशा-ज़नों की याद आई
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बने क़ानून हैं 'परवेज़' कितने फ़ाएदा क्या है
वतन में चोर-बाज़ारी तो पहले से भी बढ़ कर है