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ग़ज़ल
न रहा धुआँ न है कोई बू लो अब आ गए वो सुराग़-जू
है हर इक निगाह गुरेज़-ख़ू पस-ए-इश्तिआ'ल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ये जो कहा कि पास-ए-इश्क़ हुस्न को कुछ तो चाहिए
दस्त-ए-करम ब-दोश-ए-ग़ैर यार ने रख दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
देख लेना पस-ए-क़ातिल भी कोई होगा ज़रूर
सिर्फ़ क़ातिल ही चलाता नहीं ख़ंजर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मैं ने मंज़र ही नहीं देखे हैं पस-मंज़र भी
मुझ में अब जुरअत-ए-दीदार कहाँ से आई
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ये चराग़ मेरी उमीद का ये घड़ी घड़ी तिरा मश्ग़ला
कभी दूर ही से जला दिया कभी पास आ के बुझा दिया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
कुछ हसीं यादों के मंज़र शाम से आँखों में थे
शब को मेरे पास नींद आई तो पछताई बहुत