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ग़ज़ल
कैसे उस के चाल-चलन में अंग्रेज़ी अंदाज़ न हो
आख़िर उस ने साँसें लीं हैं पच्छिम के दरबारों में
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
'मशरिक़ी' माशूक़ दो पच्छिम के महफ़िल में हो गर
दो दकन के चाहिएँ उत्तर के दो पूरब के दो
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
पच्छिम देस के फ़र्ज़ानों ने निस्फ़ जहाँ से शहर बसाए
इन में पीर बुज़ुर्ग अरस्तू बैठा रहता तन्हा तन्हा
ज्ञान चंद जैन
ग़ज़ल
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
हर तरफ़ पूरब हो पच्छिम फूल से खिलने लगे
शीशा-ओ-साग़र ने कल चूमा था मेरे हात को
अक़ील सिद्मादीकी माहिर
ग़ज़ल
दुनिया रही ख़्वाबीदा 'ख़ुर्शीद' ने शब-भर में
पच्छिम से शफ़क़ ला कर पूरब में बिछा डाली
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए
पूरब पच्छिम ढूँडा उस को आख़िर गोशा-गीर हुए
बशीर अहमद बशीर
ग़ज़ल
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन हर जानिब है एक ही हाल
कोई भी मौसम हो ग़म की चलती है पुर्वाई बहुत