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ग़ज़ल
'इंशा'-साहिब पौ फटती है तारे डूबे सुब्ह हुई
बात तुम्हारी मान के हम तो शब भर बे-आराम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नींद आँखों ही आँखों में कटती गई पौ भी फटती गई
याद करते रहे पर पुकारा नहीं वो हमारा नहीं
फ़ाख़िरा बतूल
ग़ज़ल
पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
सर्वत तेरी याद मिरे दिल के ख़ानों में गूँजती है
आसिमा ताहिर
ग़ज़ल
पौ फूटने में वक़्त है जाना है मुझ को दूर
सूरज से पहले घर से निकलने लगा हूँ मैं