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ग़ज़ल
कच्ची पेंसिल की लकीरों से उभारे थे नुक़ूश
सिद्क़ धुँदला गया मिटते हुए ख़ाके में 'सहर'
शहनाज़ परवीन सहर
ग़ज़ल
किस नगीं पर हैं तिरे नक़्श के आसार ‘अयाँ
नोट-बुक तेरी शिकस्ता तिरी पेंसिल है घुनी
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बचपन ही से ज़ेहनों में इक ख़ौफ़ बिठा कर रक्खेंगे
और हाथों पर पेंसिल से ज़ंजीर बनाई जाएगी
दानिश हयात
ग़ज़ल
दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिल अक्सर
उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
हमारे मुँह पे उस ने आइने से धूप तक फेंकी
अभी तक हम समझ कर उस को बच्चा छोड़ देते हैं
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
मेरे हमसाए ने जो कुत्ते को फेंकी थी 'नसीर'
मैं ने वो रोटी उठा कर बच्चियों में बाँट दी
नसीर बलोच
ग़ज़ल
हम ने तहज़ीब से मयख़ाने का बदला है निज़ाम
हम ने मय फेंकी न मयख़ाने में साग़र तोड़ा