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ग़ज़ल
रात पेट्रोल की आग से शहर में यूँ चराग़ाँ हुआ
काँप कर बुझ गईं दिल के रौशन झरोकों की सब बत्तियाँ
मंज़र शहाब
ग़ज़ल
दोश पर ईमान की गठरी हो सर हो या न हो
पेट ख़ाली हैं तो क्या पेटों पे पत्थर बाँध लो