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ग़ज़ल
बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
वो ज़बाँ पे ताले पड़े हुए वो सभी के दीदे फटे हुए
बहा ले गया जो तमाम को मिरी गुफ़्तुगू का बहाओ था
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
सय्यद-नगरी नई-निराली भोर-फटे सब रद्दी वाले
रोज़ पुकारें रद्दी बेचो आख़िर कितनी रद्दी है