आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "phere"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "phere"
ग़ज़ल
उन का ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है
सर-आँखों पर सूरज ही को घूमने दो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जहाँ ले जाना है ले जाए आ कर एक फेरे में
कि हर दम का तक़ाज़ा-ए-हवा अच्छा नहीं लगता
आशुफ़्ता चंगेज़ी
ग़ज़ल
मुझ से आँखें फेर के तू ने ये मुश्किल भी आसाँ कर दी
वर्ना तेरे ग़म के बदले लेता कौन बसेरे दिल में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
शब-ए-फ़ुर्क़त के ग़म झेले हुओं का दम निकलता है
सफ़ी लखनवी
ग़ज़ल
मन मंदिर में ध्यान मगन है इक तेरा सच्चा साधू
और साधू के फेरे लेती जोगन गहरी ख़ामोशी