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ग़ज़ल
जाने वालों को जाना है कब आते हैं लौट के फिर
सर फोड़ो यादों में उन की रो के सहर से शाम करो
इरशाद अज़ीज़
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐसे शख़्स को मीर बनाया जो बस ख़्वाब दिखाता था
बस्ती के लोगों ने अपना-आप मुक़द्दर फोड़ लिया