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ग़ज़ल
किरन फूटी उफ़ुक़ पर आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर की
सुनाए जाओ अपनी दास्तान-ए-ज़िंदगी कब तक
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
चर्ख़-ए-बद-बीं की कभी आँख न फूटी सौ बार
तीर नाले ने मिरे चश्म-ए-ज़ुहल में मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तिरा सीधा सा वो बयान है तिरी टूटी-फूटी ज़बान है
तिरे पास हैं यही ठेकरे तू महल इन्हीं से बनाए जा
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
जिस को समझे लब-ए-पाँ-ख़ुर्दा वो मालिदा-मिसी
मर्दुमाँ देखियो फूली वो कहीं शाम न हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
खुले बालों से मुँह की रौशनी फूटी निकलती है
तुम्हारा हुस्न तो साहब अँधेरे का उजाला है