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ग़ज़ल
कहें हैं सब्र किस को आह नंग ओ नाम है क्या शय
ग़रज़ रो पीट कर उन सब को हम यक बार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
पीत में ऐसे लाख जतन हैं लेकिन इक दिन सब नाकाम
आप जहाँ में रुस्वा होगे वाज़ हमें फ़रमाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम से भी पीत की बात करो कुछ हम से भी लोगो प्यार करो
तुम तो परेशाँ हो भी सकोगे हम को यहाँ पे दवाम कहाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हुस्न को पहना चुके जब ख़ुद-नुमाई का लिबास
इश्क़ ने सर पीट कर पूछा कि ये क्या कर दिया
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
दुनिया का दस्तूर यही है दिल यूँ कब तक रोएगा
इन अच्छी सूरत वालों ने किस से पीत निभाई है
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
मजीद अमजद
ग़ज़ल
जिस से चाहें दिल को लगाएँ दुनिया वाले क्यूँ समझाएँ
इतनी बात तो सब ही जानें पीत किए दुख होता है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
पीत के मीठे मधुर मनोहर बोल लिए आता है कोई
साँझ का टीला बोला खिड़की दरवाज़े चौखट जागे
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
बे-ग़रज़ जाँ नज़्र करने की रिवायत पिट चुकी
'इश्क़ के दरबार के आदाब चोरी हो गए