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ग़ज़ल
पीर-ए-गर्दूं से ज़रा अंजुम उचक कर छीन लें
हिम्मतें आली हैं फ़िक्र-ए-चर्ख़-ए-बालाई नहीं
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
उन की बाँहों के हल्क़े में इश्क़ बना है पीर-ए-तरीक़
अब ऐसे में बताओ यारो किस जा कुफ़्र किधर ईमान
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
याँ बादा-ए-अहमर के छलकते हैं जो साग़र
ऐ पीर-ए-मुग़ाँ देख कि है सारी दुकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
अदू का ख़त है या तावीज़ है जो यूँ है सीने पर
ये क्यूँ रक्खा गया है इज़्ज़त-ओ-तौक़ीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ियादा आईने से है मुनव्वर मुसहफ़-ए-आरिज़
और इस पर ख़ाल-ए-मुश्कीं आया-ए-ततहीर की सूरत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वस्ल है इक शहसवार-ए-हुस्न से शाम-ओ-सहर
है इनान-ए-अबलक़-ए-गर्दूं हमारे हाथ में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मय-कदे में हम दु'आएँ कर रहे हैं बार बार
इस तरफ़ भी चश्म-ए-मस्त-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना रहे
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-दोशीं को करो याद कि इस का हर रिंद
रौनक़-ए-बार-गह-ए-पीर-ए-मुग़ाँ गुज़रा है