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ग़ज़ल
शेख़ साहब आप को बुत-ख़ाने में लाया 'मुनीर'
पीर-ओ-मुर्शिद बंदा-ए-दरगाह ने धोका दिया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
चुटकियाँ साफ़ कहे देती हैं दिल की हम से
पीर-ओ-मुर्शिद है वही आज भी शैताँ सर पर
मोहसिन ख़ान मोहसिन
ग़ज़ल
सच अगर पूछो तो मेरे पीर-ओ-मुर्शिद हैं यही
मैं अक़ीदत-मंद हूँ 'क़ैसर' जनाब-ए-मीर का
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
उन की बाँहों के हल्क़े में इश्क़ बना है पीर-ए-तरीक़
अब ऐसे में बताओ यारो किस जा कुफ़्र किधर ईमान
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
याँ बादा-ए-अहमर के छलकते हैं जो साग़र
ऐ पीर-ए-मुग़ाँ देख कि है सारी दुकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
अदू का ख़त है या तावीज़ है जो यूँ है सीने पर
ये क्यूँ रक्खा गया है इज़्ज़त-ओ-तौक़ीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ियादा आईने से है मुनव्वर मुसहफ़-ए-आरिज़
और इस पर ख़ाल-ए-मुश्कीं आया-ए-ततहीर की सूरत