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ग़ज़ल
औरों को पिलाते रहते हैं और ख़ुद प्यासे रह जाते हैं
ये पीने वाले क्या जानें पैमानों पे क्या गुज़री है
क़मर जलालाबादी
ग़ज़ल
तअ'ज्जुब क्यों है मेरी बे-ख़ुदी पर अहल-ए-महशर को
वो जिस को भी पिलाते हैं कुछ ऐसी ही पिलाते हैं
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
ग़रीबों को फ़क़त उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
बड़े आराम से तुम चैन की बंसी बजाते हो