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ग़ज़ल
एक तो मैं आप नासेह हूँ परेशाँ ख़स्ता-जाँ
दिल दुखा देती है तेरी पिंद-ए-बेजा और भी
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
देख ले जो भी इन्हें वो छोड़ दे पीनी शराब
ये तिरी आँखें नहीं हैं एक मय-ख़ाना भी है
बिलाल सहारनपुरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कभी दिखलाए है पिंडे का लुत्फ़ और गात का आलम
कभी नज़दीक आ बालों की अपने बू सुंघाता है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
औरों के तो घर में जा कर दौड़ के पीनी आप शराब
मेरे आगे पी नहीं सकते माँग के पानी औरों से
मारूफ़ देहलवी
ग़ज़ल
मैं तो आ गया हूँ साक़ी तुझे मिलने के बहाने
मुझे मय ही गर थी पीनी तो थे सौ शराब-ख़ाने