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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मिरी ज़ीस्त पर मसर्रत कभी थी न है न होगी
कोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
दीन से दूर, न मज़हब से अलग बैठा हूँ
तेरी दहलीज़ पे हूँ, सब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मैं तो जब जानूँ कि भर दे साग़र-ए-हर-ख़ास-ओ-आम
यूँ तो जो आया वही पीर-ए-मुग़ाँ बनता गया
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं
थोड़ा सा इख़्तिलाफ़ है मर्द-ए-ख़ुदा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
हुजूम क्यूँ है ज़ियादा शराब-ख़ाने में
फ़क़त ये बात कि पीर-ए-मुग़ाँ है मर्द-ए-ख़लीक़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मोतकिफ़ गरचे ब-ज़ाहिर हूँ तसव्वुर में मगर
कू-ब-कू साथ ये बे-पीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
बढ़ के रिंदों ने क़दम हज़रत-ए-वा'इज़ के लिए
गिरते पड़ते जो दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे