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ग़ज़ल
पिसे दिल हज़ारों तड़प गए जो सिसक रहे थे वो मर गए
उठे फ़ित्ने हश्र बपा हुआ ये अजीब तर्ज़-ए-ख़िराम है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
होंठों में दाब कर जो गिलौरी दी यार ने
क्या दाँत पीसे ग़ैरों ने क्या क्या चबाए होंठ
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
किस तरह से न पिसे दिल रुख़-ए-गंदुम-गूँ पर
आक़िबत हज़रत-ए-आदम ही की औलाद हैं हम
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
पिसे जाते हैं दिल हर-गाम पे शोर-ए-क़यामत से
ख़िराम-ए-नाज़ तेरी फ़ित्ना-सामानी नहीं जाती
अनीस अहमद अनीस
ग़ज़ल
पाएमाल-ए-ग़म पिसे जाते हैं सुरमे की तरह
ले उड़ी किस के क़दम से गर्दिश-ए-अय्याम रक़्स
बयान मेरठी
ग़ज़ल
पिसे जाते हैं दिल रफ़्तार से आज एक आलम के
जो ऐ पीर-ए-फ़लक तू नौजवाँ होता तो क्या होता
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
जो घड़ियों दाँत पीसे हैं तो बरसों होंठ चाबे हैं
लब-ए-रंगीं के ग़म में हम ने थूका है लहू बरसों