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ग़ज़ल
फ़ुटपाथ पे भी सोने न दिया तिरे शहर के इज़्ज़त-दारों ने
हम कितनी दूर से आए थे इक रात बसर करने के लिए
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
जिन के फ़ुटपाठ पे घर पाँव में छाले होंगे
उन के ज़ेहनों में न मस्जिद न शिवाले होंगे
शिफ़ा कजगावन्वी
ग़ज़ल
मुँह चाँद उस पे ज़ुल्फ़-ए-रसा सर से पाँव तक
क्यूँ लोट-पोट हो न अदा सर से पाँव तक
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मुँह चाँद उस पे ज़ुल्फ़-ए-रसा सर से पाँव तक
क्यूँ लोट-पोट हो न अदा सर से पाँव तक
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हैं ये फुट-पाथ के बिस्तर ही मुक़द्दर कुछ के
सब नहीं लौट के जा पाते हैं घर शाम के बा'द
सिराज फ़ैसल ख़ान
ग़ज़ल
लट-पटे सज नीं तिरे दिल कूँ किया है लोट-पोट
वर्ना आलम बीच टुक बंदों का कुछ तोड़ा नहीं