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ग़ज़ल
दर्द से दर-पर्दा दी मिज़्गाँ-सियाहाँ ने शिकस्त
रेज़ा रेज़ा उस्तुख़्वाँ का पोस्त में नश्तर हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिस पर उस माह-ए-तमामी-पोश का साया पड़े
बाग़ में वो सर्व हो रश्क-ए-महर्रा फ़ाख़्ता