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ग़ज़ल
खींच लाएगी कोई मिस्रा-ए-तर आख़िर-ए-कार
ज़ुल्फ़ ज़ंजीर से नाज़ुक है मगर आख़िर-ए-कार
तालिब हुसैन तालिब
ग़ज़ल
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
अगर मिरा साथ दे सको तुम तो मौत को भी पुकार आऊँ
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
तुम को वापस बुलाती पुकारों के दुख तुम नहीं जानते
पाँव पड़ते हुए चुप के मारों के दुख तुम नहीं जानते