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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हर क़दम पर अमीर इस तरह ठहरना सोचना किस लिए
वक़्त छलनी है और इस में पानी न पुन हम-सफ़र बात सुन
रऊफ़ अमीर
ग़ज़ल
बड़े दर्शन तुम्हारे हो गए राजा की सेवा से
मगर मन का पनपना चाहते हो तो करो पुन भी
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
कर सके पर किश्त उल्फ़त का नहीं शादाब हम
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
ये धर्म पुण्य निभाने का युग नहीं है अब
असत्य बीच में रक्खा है ज्ञान से पहले
गुंजन नागर शायर बकर
ग़ज़ल
पल में मनुश है राम पुजारी पल में चेला रावन का
पाप और पुन के बीच का धागा देखो कितना कच्चा है
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले