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ग़ज़ल
जब हिन्दी सिंधी पंजाबी इस्लाम में आ कर एक हुए
ऐ फ़िरक़ा-परस्तो बाज़ आओ फिर फ़िरक़ा-परस्ती ला'नत है
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
जो फ़र्क़ समझते हैं अब तक हिन्दी सिंधी पंजाबी में
उन 'अक़्ल के पूरे लोगों से लड़ने की हिमाक़त कौन करे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
क्या जानिए ये क्या खोएगा क्या जानिए ये क्या पाएगा
मंदिर का पुजारी जागता है मस्जिद का नमाज़ी सोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
इसी मिट्टी में मिल जाएगी पूँजी उम्र भर की
गिरेगी जिस घड़ी दीवार-ए-जाँ कैसा लगेगा