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ग़ज़ल
पुर-तपाक आज भी मिलते हैं न जाने कितने
लेकिन इख़्लास 'वक़ार' इन में से अक्सर में नहीं
वक़ार मानवी
ग़ज़ल
महशर इनायती
ग़ज़ल
रह-ए-'इश्क़ में हैं ने'मत शब-ए-ग़म की तल्ख़ियाँ भी
जो गुज़ारता शब-ए-ग़म बड़ा पुर-वक़ार होता
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
बा-वक़ार लहजे में पुर-असर कहा जाए
दिल का हाल कुछ भी हो मुख़्तसर कहा जाए
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
मैं पा-शिकस्ता कहाँ तिफ़्ल-ए-नय सवार कहाँ
फिर उस की गर्द कहाँ और मिरा ग़ुबार कहाँ