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ग़ज़ल
बारा चाँद गए पूनम के प्यार भरा इक सावन भी
गए दिनों में साल भी गुज़रा और गया कुछ जीवन भी
विजय शर्मा
ग़ज़ल
न छेड़ो हम-नशीनों शाम-ए-ग़म 'पुरनम' को रोने दो
मुसीबत में किसी की दिल-लगी अच्छी नहीं लगती