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ग़ज़ल
उसे 'क़ाबिल' की चश्म-ए-नम से देरीना तअ'ल्लुक़ है
शब-ए-ग़म तुम को क्या जाने सितारो तुम तो सो जाओ
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
इज़्तिराब-ए-दिल से 'क़ाबिल' वो निगाह-ए-बे-नियाज़
बे-ख़बर मालूम होती है मगर होती नहीं
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
ये तर्ज़-ए-फ़िक्र ये रंग-ए-सुख़न कहाँ 'क़ाबिल'
तिरे कलाम से पहले तिरे कलाम के बा'द
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
रज़ा-ए-दोस्त 'क़ाबिल' मेरा मेयार-ए-मोहब्बत है
उन्हें भी भूल सकता था अगर उन की ख़ुशी होती
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
ख़ुद उस की ज़िंदगी अब उस से बरहम होती जाती है
उन्हें होगा भी पास-ए-ख़ातिर-ए-'क़ाबिल' तो क्या होगा
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
हमीं पर मुनहसिर है रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ 'क़ाबिल'
कोई नग़्मा हो अपना ही रहीन-ए-साज़ होता है
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कोई 'फ़ज़ा' तो मिले हम को क़ाबिल-ए-परवाज़
अब इन हदों में भला बाल-ओ-पर कहाँ खोलें
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
क़ाबिल-ए-तारीफ़ है तेरे फ़िदाई का इश्क़