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ग़ज़ल
दरिया पर क़ब्ज़ा था जिस का उस की प्यास अज़ाब
जिस की ढालें चमक रही थीं वही निशाना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
ज़मीं मुझ से मुनव्वर आसमाँ रौशन मिरे दम से
ख़ुदा के फ़ज़्ल से दोनों जगह क़ब्ज़ा 'क़मर' अपना
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
मुझ को बोने थे दिल में और किसी के ग़म 'आٖफ़ी'
लेकिन दिल की सुर्ख़ी ज़मीं पर अब तक उस का क़ब्ज़ा है
आफ़्ताब शकील
ग़ज़ल
वक़्त हाकिम है किसी रोज़ दिला ही देगा
दिल के सैलाब-ज़दा शहर पे क़ब्ज़ा मुझ को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
जब से दरिया पे हुआ प्यास का क़ब्ज़ा 'हाशिम'
लब-ए-दरिया कोई प्यासा नहीं देखा जाता
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
सो दुनिया में जीना बसना दिल को मरने मत देना
यार किराए-दार को घर पर क़ब्ज़ा करने मत देना
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
मिरे मिज़ाज के कूफ़े पे जिस का क़ब्ज़ा है
ख़बर नहीं कि वो कब मुझ को कर्बला कर दे
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
सिर्फ़ पानी पे तो क़ब्ज़ा था मेरे दुश्मन का
मुझ में जो ख़ून का दजला था मिरा अपना था
कैफ़ी विजदानी
ग़ज़ल
कर रहे थे अपना क़ब्ज़ा ग़ैर की इम्लाक पर
ग़ौर से देखा तो हम भी सख़्त बे-ईमान थे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मेरे घर की दीवारों पर बर्बादी का क़ब्ज़ा है
तेरी गली को जाने वाला हर रस्ता आबाद रहे
नासिर अमरोहवी
ग़ज़ल
न तीर आह का दस्त-ए-क़ुदरत में अपने
न शमशीर-ए-अबरू पे क़ब्ज़ा तुम्हारा