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ग़ज़ल
सुनते किसी ग़रीब की क्यों इल्तिजा नहीं
सब है तुम्हारे क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में क्या नहीं
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
नहीं है कोई भी शय क़ब्ज़ा-ए-तसर्रुफ़ में
किसी भी चीज़ पे इंसाँ को इख़्तियार नहीं
रियासत अली ताज
ग़ज़ल
गुलों से क़ुर्बतें साबित फ़क़त ख़ुशबू से होती हैं
क़बाएँ तो सबा की क़ब्ज़ा-ए-सरसर में रक्खी हैं
ख़्वाजा रब्बानी
ग़ज़ल
जाने क्या जादू इलाही क़ब्ज़ा-ए-क़ातिल में है
तीर उस के हाथ में है ज़ख़्म मेरे दिल में है
बेगम सुल्ताना ज़ाकिर अदा
ग़ज़ल
आज-कल नींद से इस तरह मैं चौंक उठता हूँ
जैसे ख़्वाबों पे भी अब क़ब्ज़ा-ए-तन्हाई है
साक़िब क़मरी मिस्बाही
ग़ज़ल
तुम्हारे क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में मेहर-ओ-माह सही
मगर ये क्या कि मिरे पास इक किरन न रहे