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ग़ज़ल
इस दौर-ए-कद्र-दान-ए-सुख़न में ये इत्तिफ़ाक़
शाइर वही है रौनक़-ए-महफ़िल कहें जिसे
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
उफ़ुक़ का चेहरा 'सुख़न' इस कदर उदास है क्यूँ
शफ़क़ के रंग में ये सुर्ख़ी-ए-लहू कैसी
अब्दुल वहाब सुख़न
ग़ज़ल
सदार ख़ान सोज़
ग़ज़ल
सुख़न हैं हल्क़ा-ए-मिसरा में ज्यूँ दुर-ए-शहवार
है ये रिजा कि क़दर-दाँ के कान से गुज़रे
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-इल्म से रौशन है शम-ए-बज़्म-ए-सुख़न
सला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-दाँ के लिए