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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कोई भी क़ैद-ए-मुसलसल मिरी क़िस्मत में न थी
मेरे सय्याद का दिल टूट गया है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
हो क़ैद-ए-तफ़क्कुर से कब आज़ाद सुख़न-वर
मंज़ूर क़फ़स मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ के लिए है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तज्दीद-ए-तफ़क्कुर का तुझे वहम हुआ है
मैं तेरे ख़यालों में तज़ादात बता दूँ
सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद
ग़ज़ल
मेरे एहसास ओ तफ़क्कुर में सुलगती है जो आग
वही मज़लूम के अश्कों में निहाँ होती है
महेश चंद्र नक़्श
ग़ज़ल
दिल-ए-'मुज़्तर' को क़ैद-ए-दाम-ए-गेसू-ए-परेशाँ से
रिहा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शब को यलग़ार-ए-तफ़क्कुर से जो बच निकलूँ मैं
सुब्ह-दम ताज़ा ख़यालात के लश्कर आ जाएँ