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ग़ज़ल
दिल में मिरे ख़याल-ए-रुख़-ए-मह-जबीं रहा
साया परी का शीशे में सूरत-गुज़ीं रहा
मुंशी मोहम्मद हयात ख़ाँ मज़हर
ग़ज़ल
सज्दा-गाह-ए-अहल-ए-दिल बा'द-ए-फ़ना हो जाइए
सफ़्हा-ए-हस्ती पे इक नक़्श-ए-वफ़ा हो जाइए
हिरमाँ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं
फूल हैं दिलकशी नहीं चाँद है चाँदनी नहीं
असर रामपुरी
ग़ज़ल
सारे दिन दश्त-ए-तजस्सुस में भटक कर सो गया
शाम की आग़ोश में सूरज भी थक कर सो गया
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
मोहब्बत कश्मकश में रह गई सिर्र-ए-निहाँ बन कर
मिरे दिल का यक़ीं हो कर तिरे दिल का गुमाँ बन कर
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
आजिज़ मातवी
ग़ज़ल
नर्म शगुफ़्ता चाँदनी हँसता हुआ कँवल कहूँ
ऐसा कोई सनम कहाँ जिस के लिए ग़ज़ल कहूँ