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ग़ज़ल
तय-शुदा वक़्त पर वो पहुँच जाता है प्यार करने वसूल
जिस तरह अपना क़र्ज़ा कभी कोई बनिया नहीं छोड़ता
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
क्यूँ मुझ को लहू देने पे तुम लोग ब-ज़िद हो
मैं सर पे किसी शख़्स का क़र्ज़ा नहीं रखता
फ़राग़ रोहवी
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-ज़र रिश्ता-ए-ख़ूँ से है बढ़ कर मो'तबर
वर्ना चाहत के लिए क़र्ज़ा बने मिक़राज़ क्यूँ
कृष्ण मोहन
ग़ज़ल
तुम्हारे प्यार का क़र्ज़ा है इस क़दर दिल पर
फ़क़ीर-ए-दिल भी तो क़िस्तों में ही घिरा हुआ है
सईद इक़बाल सादी
ग़ज़ल
बहुत सा बोझ था दिल पर सो दश्त-ए-उल्फ़त में
तुम्हारे प्यार का क़र्ज़ा चुका के आई हूँ