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ग़ज़ल
किसी के हुस्न ने काफ़िर बना दिया 'माइल'
लगा के क़श्क़ा-ए-दुर्द-ए-शराब-ख़ाना-ए-इश्क़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
अब तो हर शक्ल यहाँ ज़ेब-ए-नुमाइश ठहरी
हम ने तमसील-नगर ऐसा बसाया अपना