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ग़ज़ल
जानता हूँ कि सुकूँ क़िस्मत-ए-इंसाँ में नहीं
मैं तुम्हें अपना बना लूँ मिरे इम्काँ में नहीं
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
दिल की तस्कीन नहीं क़िस्मत-ए-इंसाँ में नहीं
मैं उन्हें अपना बना लूँ मिरे इम्काँ में नहीं
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
कमाल सालारपूरी
ग़ज़ल
बे-अमल लोगों से जब पूछो तो कहते हैं की 'शान'
हम अज़ल से क़िस्मत-ए-नाकाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
कोई भी क़ैद-ए-मुसलसल मिरी क़िस्मत में न थी
मेरे सय्याद का दिल टूट गया है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
मिरी क़िस्मत लिखी जाती थी जिस दिन मैं अगर होता
उड़ा ही लेता दस्त-ए-कातिब-ए-तक़दीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
क़ैदी-ए-ज़ुल्फ़ की क़िस्मत में है रुख़्सार की सैर
शुक्र है बाग़ भी है मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास