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ग़ज़ल
ख़ुद इश्क़ क़ुर्ब-ए-जिस्म भी है क़ुर्ब-ए-जाँ के साथ
हम दूर ही से उन को पुकार आए ये नहीं
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
जिस्म-ए-ख़ाकी तुझ को शीशे की हवेली ही सही
ऐ चराग़-ए-जाँ कभी फ़ानूस के बाहर तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
'परवीं' ग़लत है उन को समझना जुदा जुदा
हैं जिस्म-ओ-जाँ की तरह से दुनिया-ओ-दीं शरीक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़र्रा देखा जो कभी मुत्तसिल-ए-महर-ए-फ़लक
मैं ने क़ुर्ब-ए-रुख़-ए-पुर-नूर-ए-सनम तिल समझा
अब्दुल मजीद ख़्वाजा शैदा
ग़ज़ल
कुछ सुकूँ कुछ ज़ब्त कुछ रंग-ए-क़रार आता गया
अल-ग़रज़ इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-क़ुर्ब-ए-यार आता गया
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
हम हैं असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-मोहब्बत मुदाम बस
हमराह-ए-बू-ए-क़ुर्ब-ए-सनम हो ख़िराम बस
अख़लाक़ अहमद आहन
ग़ज़ल
ख़ून दिल का जो किया करते हैं आनन-फ़ानन
तेज़ नश्तर भी वो क़ुर्ब-ए-रग-ए-जाँ मिलते हैं
अज़ीज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
बनेंगे आज फिर सरमस्त सहबा-ए-सुख़न 'रौनक़'
क़दम फिर अपना क़ुर्ब-ए-महफ़िल-ए-रिंदाना आ पहुँचा
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुदी कहाँ कि मोहब्बत में अब ये आलम है
नहीं है क़ुर्ब-ए-दर-ए-दोस्त फिर भी सर ख़म है